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भारत में पत्रकारिता का इतिहास,समाचार पत्र, पृष्टभूमि,उद्देश्य ,एवं प्रभाव को विस्तार से जानिए,इस आर्टिकल में


  • भारत में पत्रकारिता की शुरुआत: इतिहास, पृष्ठभूमि, उद्देश्य और प्रभाव

  • प्रस्तावना-
  • भारत में पत्रकारिता की यात्रा एक लंबा, रोचक और चुनौतीपूर्ण सफर रहा है। आज जब हम डिजिटल युग में सूचना के महासागर में तैर रहे हैं, तब यह जानना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि पत्रकारिता का यह बीज कब, कैसे और किन ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियों में बोया गया था। पत्रकारिता न सिर्फ सत्ता से प्रश्न पूछने की परंपरा का नाम है, बल्कि जनचेतना, सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय आंदोलनों का भी सशक्त माध्यम रही है। यह रिपोर्ट एक सरल व फिर भी अत्यंत गहन विश्लेषण के साथ भारतीय पत्रकारिता के प्रारंभ, उसके उद्देश्य, प्रारंभिक समाचार पत्रों, उनकी सामाजिक भूमिका और ऐतिहासिक जमीन का विस्तार से अवलोकन करती है।

  • भारत में प्रिंटिंग प्रेस का आगमन

  • प्रारंभिक छपाई एवं मिशनरी प्रयास
  • भारत में पत्रकारिता की शुरुआत का संबंध सीधे-सीधे प्रिंटिंग प्रेस के आगमन से है। सबसे पहले प्रिंटिंग प्रेस वर्ष 1556 में पुर्तगाली मिशनरियों द्वारा गोवा में लाया गया, जब यह एथियोपिया भेजे जाने के बजाय गोवा में ही स्थापित कर दिया गया। इसके जरिए भारत में पहली बार 'Doctrina Christa' नामक पुस्तक छपी, जिसका उद्देश्य धार्मिक शिक्षा देना था। प्रारंभ में अधिकतर छपाई का कार्य ईसाई धर्म के प्रचार के लिए किया गया, लेकिन आगे चलकर यह सामाजिक जागरूकता और ज्ञान के प्रसार का माध्यम बना।

  • प्रारंभिक भारतीय भाषाओं में मुद्रण की शुरुआत धीरे-धीरे हुई। 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में तमिल, कोंकणी आदि भाषाओं में लिपि तैयार हुई, कुछ धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन हुआ, और बाद में 18वीं सदी में अंग्रेज़ों के आने के साथ यह तकनीकी विस्तार पाती गई। छपाई और पुस्तकों की उपलब्धता ने सामाजिक जागरूकता का मार्ग खोलना शुरू कर दिया और पत्रकारिता के लिए आधारभूमि तैयार की।

  • ईस्ट इंडिया कंपनी और प्रारंभिक प्रेस

  • 1684 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंबई में अपना पहला प्रिंटिंग प्रेस लगाया, जिसका मुख्य उद्देश्य प्रशासनिक और व्यापारिक सूचना का मुद्रण था। 18वीं सदी तक भारत के बड़े शहरों—कलकत्ता, बंबई, मद्रास—में प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना हो चुकी थी। प्रारंभिक प्रेस कंपनी और अंग्रेज प्रशासन के हितों की पूर्ति के लिए, पादरियों, विद्वानों और यूरोपीय निवासियों की आवश्यकताओं के अनुरूप था।
  • सांस्कृतिक जागरण और प्रशासनिक बदलाव की लहर के बीच जब सूचना का महत्व बढ़ने लगा, छपाई से जुड़े भारतीय और यूरोपीय दोनों ही समुदायों में समाचार पत्र निकालने की प्रेरणा पैदा हुई। इसके मूल में आधुनिक सोच, नवजागरण की ज़रूरत, और ‘जनता तक सूचना पहुँचाने की चाह’ केंद्र में थी।

  • पत्रकारिता की ऐतिहासिक, सामाजिक व राजनीतिक पृष्ठभूमि

  • औपनिवेशिक सामाजिक-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
  • 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत यूरोपीय उपनिवेशवाद का अखाड़ा बन चुका था और बंगाल, बंबई, मद्रास जैसे नगर ब्रिटिश शक्तियों के अधीन व्यापार और सत्ता का केंद्र बन रहे थे। ईस्ट इंडिया कंपनी प्रशासन व्यापक भ्रष्टाचार, तानाशाही और स्थानीय समाज के साथ असंवेदनशीलता का परिचायक बन रही थी। इसी वातावरण में समाचार पत्र केवल सूचना-प्रसार का उपकरण नहीं, बल्कि सत्ता की आलोचना, सुधार, और समाज के विभिन्न वर्गों को स्वर देने का माध्यम बनता गया।
  • अंग्रेजों के बीच सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा, स्थानीय भारतीय समाज में जागरूकता का अभाव, और समाज सुधारकों की तलाश ने पत्रकारिता के प्रारंभिक प्रयासों को प्रोत्साहित किया। अंग्रेज़ी अखबारों में शुरुआत में प्रशासनिक सूचनाएँ, विज्ञापन, वाणिज्यिक समाचार और हल्की-फुल्की गॉसिप रहती थी, लेकिन दबाव, असंतोष और विमर्श की धार बढ़ती गई।

  • जेम्स ऑगस्टस हीकी एवं बंगाल गज़ेट (1780): भारत का पहला समाचार पत्र

  • बंगाल गज़ेट की शुरुआत व स्वरूप
  • भारत का पहला मुद्रित समाचार पत्र ‘हिक्की का बंगाल गजट’ (Hicky’s Bengal Gazette) था, जिसका प्रकाशन 29 जनवरी 1780 से कलकत्ता (अब कोलकाता) में शुरू हुआ। इसके संपादक और प्रकाशक थे जेम्स ऑगस्टस हीकी, जो मूलतः आयरलैंड से आए थे। यह अंग्रेज़ी भाषा में छपने वाला समाचार पत्र ‘Calcutta General Advertiser’ के नाम से भी जाना जाता था और एशिया का प्रथम मुद्रित समाचार पत्र था।

  • बंगाल गज़ेट की प्रेरणा यूरोप की स्वतंत्र प्रेस और पत्रकारिता से ली गई थी। हीकी की सोच थी—"Open to all parties, but influenced by none"—यानी किसी भी विचारधारा से प्रभावित हुए बिना, सभी पक्षों और विचारों के लिए खुला। यह 2-पृष्ठीय साप्ताहिक पत्र था, जिसकी कीमत 1 रुपया रखी गई थी और हर हफ्ते करीब 400 प्रतियाँ छपती थीं। प्रारंभ में इसमें स्थानीय खबरें, विज्ञापन तथा हल्की टिप्पणियाँ प्रकाशित होती थीं, लेकिन जैसे ही हीकी ने ब्रिटिश अधिकारियों के भ्रष्टाचार और अन्याय की आलोचना शुरू की, इसका स्वर तेज और निर्भीक होता गया।

  • स्वतंत्रता और संघर्ष की मिसाल

  • बंगाल गजट ने औपनिवेशिक सत्ता की नीतियों, गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स के प्रशासन, न्यायिक पक्षपात, टैक्स और ब्रिटिश समाज की सामाजिक बुराइयों की खुलेआम आलोचना शुरू कर दी। हीकी ने अपने अखबार में गवर्नर-जनरल की पत्नी पर भी टिप्पणी की, जिससे ब्रिटिश प्रशासन क्रुद्ध हो गया। सुप्रीम काउंसिल ने पत्र के डाक वितरण पर प्रतिबंध लगाया और बार-बार मानहानि के मुकदमे किये। आखिरकार 1782 में हीकी का प्रेस और टाइप जब्त कर लिया गया और अखबार बंद हो गया।

  • इस दो साल के छोटे अंतराल ने भारतीय पत्रकारिता में निर्भीकता, सत्य की आवाज़, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, और सत्ता से टकराने की परंपरा की नींव डाली। बंगाल गजट अंग्रेज सैनिकों, यूरोपीय समुदाय के अलावा स्थानीय भारतीयों में भी लोकप्रिय हुआ तथा इसकी स्वतंत्रता की मिसाल ने बाद के भारतीय पत्रों को आवाज दी।

  • अन्य प्रारंभिक अंग्रेज़ी समाचार पत्र

  • हीकी के बाद कुछ और अंग्रेज़ी पत्र शुरू हुए:
  • - इंडिया गजट (1780): ईस्ट इंडिया कंपनी समर्थित, हीकी के विरोध में।
  • - कलकत्ता गजट (1784), बंगाल जनरल (1785), कलकत्ता क्रॉनिकल (1788), मद्रास कूरियर (1788): इन सबमें प्रशासनिक प्रोपेगैंडा व अंग्रेजी समाज के व्यावसायिक हित प्रमुख थे।
  • - बंगाल गजट (1816): भारतीय गंगाधर भट्टाचार्य का प्रयास, पहली बार भारतीय द्वारा अंग्रेज़ी में संपादित पत्र।
  • अधिकतर अंग्रेज़ी पत्रों ने अंग्रेज समाज की सेवा की, समय-समय पर सत्ता की आलोचना भी की, पर उनका स्वर अक्सर नियंत्रण में रहता था।

  • प्रमुख प्रारंभिक भारतीय भाषा समाचार पत्र

  • बंगाली समाचार पत्र
  • 1818 में बैपटिस्ट मिशनरियों ने ‘समाचार दर्पण’ निकालकर भारतीय भाषाओं में समाचार पत्रों का युग शुरू किया। साथ ही ‘दिग्दर्शन’ मासिक पत्रिका का भी प्रकाशन हुआ। इन पत्रों का क्षेत्र धार्मिक, सामाजिक सुधार, शिक्षा और जनजागरण था।

  • संवाद कौमुदी (1821), राजा राममोहन राय के प्रबन्धन में, बंगाली में निकला। यह पत्र सती प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठाने, सामाजिक सुधार, और तार्किक सोच को प्रोत्साहित करने के लिए प्रसिद्ध था। 'समाचार चंद्रिका', 'मिरातुल अखबार', और 'ब्राह्मनिकल मैगजीन' जैसे अन्य पत्र भी राय के प्रयास थे, जिनका उद्देश्य समाज हित व सुधार था।

  • हिंदी का पहला अखबार: उदन्त मार्तण्ड (1826)

  • हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत 30 मई 1826 को ‘उदन्त मार्तण्ड’ के प्रकाशन से हुई। इसके संपादक और संस्थापक थे पंडित जुगल किशोर शुक्ल, जो कानपुर के निवासी थे पर पत्र कलकत्ता से छपता था। यह साप्ताहिक पत्र था जिसकी भाषा को उसके संचालकों ने "मध्यदेशीय भाषा" (खड़ी बोली—ब्रज मिश्रण) कहा। पत्र के अपने उद्घोष में जुगल किशोर ने लिखा—"यह पत्र हिंदुस्तानी पाठकों के हित के लिए है, ताकि वे भी अपने सुख के लिए अपनों की भाषा में समाचार और विचार पा सकें"।

  • मूल उद्देश्य हिंदी भाषियों तक सूचना पहुँचाना, सामाजिक चेतना और आधुनिक ज्ञान का प्रसार was। क्योंकि हिंदीभाषी समाज के पास तब तक अपना कोई पत्र नहीं था। उदन्त मार्तण्ड में सामाजिक मुद्दों, प्रशासनिक समाचार, आधुनिक विज्ञान, समाज की आलोचना आदि पर निर्भीकता से लिखा जाता था। सरकारी उदासीनता, डाक सुविधा से वंचित रहना और पाठक सहयोग के अभाव में यह पत्र डेढ़ वर्ष बाद (दिसंबर 1827) बंद हो गया, किंतु यह हिंदी पत्रकारिता की अमिट नींव बन गया।

  • हर वर्ष 30 मई को 'हिंदी पत्रकारिता दिवस' के रूप में मनाया जाता है।

  • गुजराती पत्रकारिता: मुंबई समाचार (1822)
  • गुजराती भाषा के पहले अखबार ‘मुंबई समाचार’ की शुरुआत 1 जुलाई 1822 को फर्दुनजी मुरज़बान ने मुंबई में की थी। यह एक साप्ताहिक के रूप में शुरू हुआ और आगे चलकर द्वि-साप्ताहिक, फिर दैनिक बना। खास बात यह है कि ‘मुंबई समाचार’ एशिया के सबसे पुराने लगातार प्रकाशित होने वाले अखबारों में शामिल है। यह मुख्यतः मुंबई के व्यापारिक समुदाय के लिए निकला था, लेकिन आगे चलकर इसने औद्योगिक, सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में भी योगदान दिया।

प्रारंभिक समाचार पत्रों का विवरण                

1. *बंगाल गजट*:
    - संस्थापक/सम्पादक: जेम्स ऑगस्टस हिक्की
    - वर्ष: 1780
    - उद्देश्य/विशेषता: भारतीय पत्रकारिता की नींव, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, ईस्ट इंडिया कंपनी की आलोचना

2. *इंडिया गजट*:
    - संस्थापक/सम्पादक: ईस्ट इंडिया कंपनी समर्थित
    - वर्ष: 1780
    - उद्देश्य/विशेषता: कंपनी समर्थक, प्रतिद्वंदी के रूप में

3. *कलकत्ता गजट*:
    - संस्थापक/सम्पादक: अज्ञात
    - वर्ष: 1784
    - उद्देश्य/विशेषता: अंग्रेजी में प्रशासनिक समाचार

4. *समाचार दर्पण*:
    - संस्थापक/सम्पादक: मार्शमैन
    - वर्ष: 1818
    - उद्देश्य/विशेषता: बंगाली (भारतीय भाषा का प्रथम समाचार पत्र), धार्मिक-सामाजिक विषय

5. *दिग्दर्शन*:
    - संस्थापक/सम्पादक: मार्शमैन
    - वर्ष: 1818
    - उद्देश्य/विशेषता: बंगाली मासिक पत्रिका, जागरूकता

6. *संवाद कौमुदी*:
    - संस्थापक/सम्पादक: राजा राममोहन राय
    - वर्ष: 1821
    - उद्देश्य/विशेषता: समाज सुधार, धार्मिक कट्टरता का विरोध

7. *समाचार चंद्रिका*:
    - संस्थापक/सम्पादक: राजा राममोहन राय
    - वर्ष: 1822
    - उद्देश्य/विशेषता: धार्मिक विचारों का विरोध

8. *मिरातुल अखबार*:
    - संस्थापक/सम्पादक: राजा राममोहन राय
    - वर्ष: 1822
    - उद्देश्य/विशेषता: फारसी में, सामाजिक चेतना

9. *ब्रह्मनिकल मैगजीन*:
    - संस्थापक/सम्पादक: राजा राममोहन राय
    - वर्ष: 1822
    - उद्देश्य/विशेषता: धार्मिक सुधार, ब्रह्म समाज के विचार

10. *मुंबई समाचार*:
    - संस्थापक/सम्पादक: फर्दुनजी मुरज़बान
    - वर्ष: 1822
    - उद्देश्य/विशेषता: गुजराती (भारत का सबसे पुराना चालू समाचार पत्र)

11. *उदन्त मार्तण्ड*:
    - संस्थापक/सम्पादक: जुगल किशोर शुक्ल
    - वर्ष: 1826
    - उद्देश्य/विशेषता: पहला हिंदी समाचार पत्र, हिंदी भाषियों के लिए सूचना प्रचार

12. *सम्वाद प्रभाकर*:
    - संस्थापक/सम्पादक: ईश्वरचंद्र गुप्त
    - वर्ष: 1830
    - उद्देश्य/विशेषता: बंगाली, सामाजिक जागरण

13. *बंगदूत*:
    - संस्थापक/सम्पादक: राजा राममोहन राय, टैगोर
    - वर्ष: 1830
    - उद्देश्य/विशेषता: बहुभाषीय (अंग्रेज़ी, बंगला, हिंदी, फारसी)

14. *सोम प्रकाश*:
    - संस्थापक/सम्पादक: ईश्वरचंद्र विद्यासागर
    - वर्ष: 1859
    - उद्देश्य/विशेषता: बंगाली, सामाजिक सुधार

15. *अमृत बाजार पत्रिका*:
    - संस्थापक/सम्पादक: मोतीलाल घोष
    - वर्ष: 1868
    - उद्देश्य/विशेषता: बंगला से अंग्रेजी, राष्ट्रीय चेतना

16. *हिन्दू पैट्रियाट*:
    - संस्थापक/सम्पादक: हश्चिन्द्र मुखर्जी/क्रिस्टोदास पाल
    - वर्ष: 1890
    - उद्देश्य/विशेषता: अंग्रेजी, भारतीय सम्पादक, राष्ट्रवादी विचार

17. *प्रताप*:
    - संस्थापक/सम्पादक: गणेश शंकर विद्यार्थी
    - वर्ष: 1910
    - उद्देश्य/विशेषता: उग्र राष्ट्रीयता, मजदूर-किसान हित

18. *केसरी*:
    - संस्थापक/सम्पादक: बाल गंगाधर तिलक
    - वर्ष: 1881
    - उद्देश्य/विशेषता: मराठी, स्वदेशी आंदोलन

19. *मराठा*:
    - संस्थापक/सम्पादक: बाल गंगाधर तिलक
    - वर्ष: 1881
    - उद्देश्य/विशेषता: अंग्रेजी में, राष्ट्रवादी विचार

20. *न्यू इंडिया*:
    - संस्थापक/सम्पादक: एनीबेसेन्ट
    - वर्ष: 1914
    - उद्देश्य/विशेषता: अंग्रेजी, स्वतंत्रता समर्थन

21. *दी फ्री प्रेस जरनल*:
    - संस्थापक/सम्पादक: एस. सदानन्द
    - वर्ष: 1930
    - उद्देश्य/विशेषता: स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन

यह सूची भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में महत्वपूर्ण समाचार पत्रों और उनके योगदान को दर्शाती है।

विश्लेषण-
  • यह तालिका दर्शाती है कि भारतीय पत्रकारिता का विकास प्रारंभिक अंग्रेजी प्रयासों से शुरू हुआ, फिर बंगाली, हिंदी, गुजराती जैसी भाषाओँ में समाचार पत्रों की बाढ़ आई। शुरू में सामाजिक सुधार, सूचना प्रचार, प्रशासनिक आलोचना, और आगे चलकर राष्ट्रीयता, स्वतंत्रता संघर्ष, और समाज सुधार पत्रकारिता के मुख्य उद्देश्य बने।

  • प्रारंभिक समाचार पत्रों के उद्देश्य

  • प्रारंभिक समाचार पत्र महज सूचनाओं के आदान-प्रदान का माध्यम नहीं थे। उनमें निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य निहित थे:
  • - सामाजिक जागरण एवं सुधार: राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आदि ने पत्रकारिता को समाज में व्याप्त सती प्रथा, बाल विवाह, जातिवाद, अशिक्षा, अंधविश्वास के खिलाफ जनमत बनानें का साधन माना।
  • - राजकीय एवं राष्ट्रीय चेतना: विदेशी राज के अन्याय, करों की कड़ी व्यवस्था, शक्ति के दुरुपयोग, अफसरशाही और विभाजनकारी नीति के विरोध में जनता को जागृत करने हेतु। केसरी, अमृत बाजार पत्रिका, प्रताप जैसे पत्रों ने राष्ट्रवाद का प्रचार किया।
  • - जनमत निर्माण और सूचना प्रसार: प्रशासन की कड़ी निगरानी, भ्रष्टाचार का पर्दाफाश, विभिन्न क्षेत्रों की घटनाओं की जानकारी आम जन तक पहुँचाना।
  • - लोकव्यापी भाषायी जागरुकता: हिंदी, बंगाली, गुजराती, उर्दू, तमिल, मराठी आदि क्षेत्रीय भाषाओं में जनमानस तक सूचना पहुँचाना और भाषा के मानकीकरण, साधारणता और लोकतांत्रिक स्वरूप को बल देना।

  • सामाजिक एवं राष्ट्रीय जागरण में पत्रकारिता की भूमिका

  • भारतीय पत्रकारिता, विशेषकर वर्णनिका (vernacular/local language) प्रेस, सामाजिक सुधार, धार्मिक कुरीतियों के विरोध, आधुनिक शिक्षा के प्रचार, देशभक्ति व राष्ट्रीय चेतना के जागरण का प्रमुख स्रोत बन गई। संवाद कौमुदी, समाचार दर्पण, उदन्त मार्तण्ड जैसे पत्रों ने सामाजिक आंदोलन को चेतना दी, जनसंपर्क, विचार-विनिमय और विरोध प्रदर्शनों का मंच प्रदान किया। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से पत्रकारिता स्वतंत्रता संग्राम की घोषणा, विचारों, घोषणाओं, और रणनीति का माध्यम बनी। बाल गंगाधर तिलक ने केसरी-माराठा में स्वाराज, बहिष्कार, स्वदेशी आंदोलन का दिव्याग्नि प्रज्वलित किया। प्रताप पत्र (गणेश शंकर विद्यार्थी) मजदूर-किसान आंदोलनों, अंग्रेज अत्याचार के विरुद्ध मुखर हुआ। महात्मा गांधी के यंग इंडिया, हरिजन, नवजीवन ने सत्याग्रह, हिन्द स्वराज, और लोकतंत्र का सार प्रसारित किया।

उपनिवेशकालीन प्रेस नियंत्रण कानून

प्रारंभिक नियंत्रण
शुरुआत में अंग्रेज़ी सरकार ने पत्रकारिता की शक्ति को समझते हुए कई कानून बनाकर इसे नियंत्रण में रखने की कोशिश की। 

  • पत्रेक्षण अधिनियम या सेंसरशिप अधिनियम  (1799): गवर्नर जनरल वेलेजली का आदेश, संपादक-मुद्रक-स्वामी का नाम, सेंसर।
  • अनुज्ञप्ति  या लाइसेंस अधिनियम (1823): मुद्रणालय चलाने के लिए लाइसेंस अनिवार्य। राजा राममोहन राय का 'मिरातुल अखबार' इसी नियम में बंद करना पड़ा।
  • पंजीकरण अधिनियम (1867): प्रत्येक पुस्तक व समाचार पत्र पर मुद्रक-प्रकाशक का नाम आवश्यक।
  • दि गगिंग एक्ट (1857): 1857 विद्रोह के बाद राष्ट्रवादी विचारों को दबाने के लिए।
  • प्रेस अधिनियम (1910), भारतीय प्रेस अधिनियम (1910), 
  • क्रिमिनल अमेंडमेंट एक्ट (1931): भारी जमानत, संपत्ति जब्ती, प्रकाशन पर रोक।
  •  प्रेस इन्क्वायरी कमेटी (1921)
  • समाचार पत्र आयोग (1954): प्रेस की स्वतंत्रता पुनः निर्धारित।

वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट (1878)

  • लॉर्ड लिटन ने वर्ष 1878 में 'वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट' पास किया। इसका मकसद भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों की आज़ादी पर लगाम कसना था, क्योंकि ये प्रेस ब्रिटिश शासन की निर्भीक आलोचना करते थे, और जन-जन में देशभक्ति जगा रहे थे। 
  • -जिला मजिस्ट्रेट को अधिकार मिला कि वे भारतीय भाषाई अखबारों से लिखवा लें कि “सरकार-विरोधी सामग्री नहीं छापेंगे”, उल्लंघन पर प्रेस जब्ती और जमानत जब्त।
  •  कोई अपील का अधिकार नहीं।
  • अंग्रेज़ी समाचार पत्र इससे मुक्त रहे, इससे असंतोष और बढ़ा और अमृत बाजार पत्रिका जैसे पत्र अंग्रेज़ी में बदल गए।
  • आलोचना, विरोध और आंदोलन के अनुसार लॉर्ड रिपन ने 1882 में इस एक्ट को रद्द कर दिया। 
  • प्रेस के दमन से भारतीय राष्ट्रीय चेतना और अधिक प्रबल हुई।

प्रिंट तकनीक में प्रगति और पत्रकारिता पर प्रभाव

  • प्रारंभिक भारतीय मीडिया मुख़्यतः हस्तलिखित या लिमिटेड वितरण में था। प्रिंटिंग प्रेस की तकनीकी उपलब्धता और प्रेस मालिकों की जागरूकता ने छपाई की दक्षता बढ़ाई। 
  • -गुटेनबर्ग की धातु के अक्षरों की छपाई विधि से प्रेरणा पाकर भारत में 18वीं-19वीं सदी में अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के यंत्र आये।
  • सेरामपुर (श्रीरामपुर) के बैपटिस्ट मिशन ने बाइबिल अनुवाद के लिए हिंदी समेत कई भारतीय भाषाओं के टाइप और फॉन्ट विकसित किए।
  • 1854 में दैनिक समाचार 'समाचार सुधावर्षण' बंगला-हिन्दी में प्रकाशित हुआ।
  • आगे चलकर पत्रिकाओं, साहित्यिक और स्त्री जागरण हेतु पत्रों, स्थानीय मुद्दों, नवीन विज्ञान—सम्पूर्ण विषयों की छपाई का विस्तार हुआ।
  • प्रेसों की प्रगति ने सूचना, विचार, बहस और आंदोलन—सम्पूर्ण सार्वजनिक जीवन को गति दी।

प्रारंभिक अंग्रेज़ी समाचार पत्रों और भारतीय भाषा समाचार पत्रों की सूची

प्रारंभिक अंग्रेज़ी समाचार पत्र
  • बंगाल गजट (1780), इंडिया गजट (1780)
  •  कलकत्ता गजट (1784), बंगाल जनरल (1785), ऑरिएंटल मैगजीन (1785)
  • बॉम्बे हेराल्ड (1789), बॉम्बे कुरियर (1790), मद्रास कूरियर (1788) 

प्रारंभिक भारतीय भाषा समाचार पत्र

  • समाचार दर्पण (1818, बंगाली), दिग्दर्शन (1818, बंगाली)
  • संवाद कौमुदी (1821, बंगाली), समाचारचंद्रिका (1822, बंगाली)
  • मिरातुल अख़बार (1822, फ़ारसी), ब्राह्मनिकल मैगजीन (1822, अंग्रेजी)
  • मुंबई समाचार (1822, गुजराती), उदन्त मार्तण्ड (1826, हिंदी)
  • सम्वाद प्रभाकर (1830, बंगाली), जामे जमशेद (1831, गुजराती)
  • कविवचन सुधा (1867, हिंदी), अमृत बाजार पत्रिका (1868, बंगला बाद में अंग्रेजी)।

हिंदी पत्रकारिता: साप्ताहिक से दैनिक तक का विकास

  • हिंदी में प्रारंभिक पत्र साप्ताहिक या मासिक होते थे। "उदन्त मार्तण्ड", "बंगदूत", "बनारस अखबार" आदि के बाद भारतेन्दु युग (1867–1900) में 'कविवचन सुधा', 'हरिश्चंद्र मैगजीन', 'बालाबोधिनी', 'भारत मित्र' जैसे पत्रों ने साहित्यिक, सामाजिक और रचनात्मक विषयों को समाज के बीच रखा। धीरे-धीरे, 1854 से 'समाचार सुधावर्षण' जैसे दैनिक, 20वीं सदी में 'आज', 'हिंदुस्तान' (1936), 'दैनिक जागरण', 'दैनिक भास्कर' जैसे दैनिक पत्र प्रमुख हो गए, जिससे समाचारों की गति और पहुंच बढ़ी।

पत्रकारिता का सामाजिक-राष्ट्रीय प्रभाव

  • भारतीय पत्रकारिता ने समाज की संरचना बदलने, शोषित वर्ग की आवाज़ बनने, जनमत तैयार करने, सत्ता से सत्य को उजागर करने, सामाजिक सुधार, शिक्षा और लोकतंत्र के प्रसार को बढ़ावा दिया। स्वतंत्रता संग्राम, स्त्री शिक्षा, दलित अधिकार, आधुनिक विज्ञान, स्वास्थ्य, पर्यावरण, ग्रामीण मुद्दे—हर विषय को जनचेतना के स्तर तक पहुँचाया।
  • पत्रकारिता न सिर्फ इतिहास की गवाह बनी, उसने खुद इतिहास रचा:
  • केसरी, मराठा, प्रताप, यंग इंडिया, हरिजन, अल-हिलाल, अमृत बाज़ार पत्रिका ने अंग्रेज़ प्रशासन से निर्भीकता से लोहा लिया।
  • "पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है"—यह कथन महज कहावत नहीं, भारतीय लोकतंत्र की आत्मा बन गया।

निष्कर्ष: आज और आगे

  • भारत में पत्रकारिता की शुरुआत—एक आंदोलन, एक संघर्ष, एक समाज सुधार यात्रा थी। आज डिजिटल युग और सोशल मीडिया के दौर में पत्रकारिता की दिशा, चुनौतियां और अवसर नए रूप में हैं, पर उसकी मूल आत्मा—सत्य, साहस, विवेक और जनसेवा—जैसे तब थी, वैसे अब भी है और रहेगी।
  • भारतीय पत्रकारिता के प्रारंभिक दौर के अनुभव, उसके उद्देश्य, संघर्ष, त्याग और आदर्श—वर्तमान और भविष्य की पत्रकारिता की रीढ़ हैं। आज भी जब नई पीढ़ी पत्रकारिता में आती है, तो हीकी, जुगल किशोर, भारतेन्दु, तिलक, गांधी—सबके लेखन और संघर्ष की मिसाल प्रेरणा बन जाती है।
  • (यह विशद रिपोर्ट व्यापक संदर्भ, इतिहास, सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषण एवं नवीनतम इंटरनेट स्रोतों के आधार पर तैयार की गई है, जिससे प्रामाणिकता और समग्रता सुनिश्चित हो सके।)
  • उक्त आर्टिकल में किताबों ,पीडीएफ, ब्लॉग आर्टिकल, अर्टिफिकल इन्टेलिजेन्स का प्रयोग कर तैयार की गई है। 
  • अगर आप पत्रकारिता क्षेत्र के में काम करते हैं या पत्रकारिता एवं जनसंचार के छात्र हैं और आपको ऊपर दी गई जानकारी अच्छी लगी हो और आपकी हेल्प हुई हो, और आपको लगता है कि इस जानकारी को आपके साथ पढ़ने वाले दोस्तों को भी पता होना चाहिए, तो अपने दोस्तों को फेसबुक व्हाट्सएप और ईमेल पर Share करें और प्रशांत घुवारा ऑनलाइन Prashant Ghuwara Online  9630546735 के बारे में बताएं।

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